बन गये हैं मेरे वो शूल सुमन के |
चुभ रहे तन में जैसे छोर कफन के ||
देखा था उनको नम-नम पलकों से
छूआ था उनको नव-नव अलकों से
समझ नहीं पाये वो नेह मनन के |---
न तन सोया और न आँखें सुलायीं
विसरी वो रातें जो याद दिलायीं
ढ़ल गये योंही वो तारे मिलन के | ----
सुन्दर था बाग़ व सुन्दर थी बगिया
सुन्दर सँजी रौस सुनदर थी बटिया
मुरझाये क्यों ये जो फूल चमन के |----
सुबह थी ख़ुशबू और महकती संध्या
पावस में छलकती निशा घन गंध्या
उड़े सब हवा में ये फेर दिनन के |---
चुभ रहे तन में जैसे छोर कफन के ||
देखा था उनको नम-नम पलकों से
छूआ था उनको नव-नव अलकों से
समझ नहीं पाये वो नेह मनन के |---
न तन सोया और न आँखें सुलायीं
विसरी वो रातें जो याद दिलायीं
ढ़ल गये योंही वो तारे मिलन के | ----
सुन्दर था बाग़ व सुन्दर थी बगिया
सुन्दर सँजी रौस सुनदर थी बटिया
मुरझाये क्यों ये जो फूल चमन के |----
सुबह थी ख़ुशबू और महकती संध्या
पावस में छलकती निशा घन गंध्या
उड़े सब हवा में ये फेर दिनन के |---
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