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Thursday, December 15, 2011

बन गये हैं मेरे वो शूल सुमन के

बन गये   हैं मेरे     वो शूल सुमन के |
चुभ रहे तन में जैसे छोर कफन के ||

देखा था उनको नम-नम पलकों से
छूआ था उनको नव-नव अलकों से
समझ नहीं पाये वो नेह मनन के |---

न तन सोया और न आँखें सुलायीं
विसरी      वो रातें जो याद दिलायीं
ढ़ल गये योंही    वो तारे मिलन के |  ----

सुन्दर था बाग़ व सुन्दर थी बगिया
सुन्दर सँजी रौस सुनदर थी बटिया
मुरझाये क्यों ये जो फूल चमन के |----

सुबह थी ख़ुशबू और महकती संध्या
पावस में छलकती निशा घन गंध्या
उड़े  सब हवा में    ये  फेर दिनन  के |---






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