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Thursday, December 1, 2011

भगवान सिंह हंस और महाकाव्य
























कविवर  श्री भगवान सिंह हंसजी  ने समाज को पौराणिक श्रुति एवं भरत कथाओं का विवेचन  अपने अंतर्राष्ट्रीय विख्यात महाकाव्य भरत चरित्र में राजा दशरथ के पुत्र  भरत का चरित्र बड़े ही सरल तथा अद्भुत पार्श्व में दिया  है. जिसकी सुगंध देश-विदेश, गली-गलियारों और धार्मिक स्थलों में मानव तन को स्पर्श करती हुई द्रष्टिगोचर होती है.  श्री हंसजी ने समाज एवं मनुष्यता के लिए बहुत बड़ा काम किया है. उन्होंन श्री भरत को तो महान बनाया ही है और देश को भी महान बना दिया है.  आज जो कलियुगी बयार बह रही है उस में भी मोड़ देने की भरपूर कोशिश की है. आज भरत जैसे भाई की अपरिहार्य आवश्यकता है. भ्रात्र-प्रेम जो भरत  जैसे भाई में देखने को मिलता है ऐसा भ्रात्र-प्रेम देखने को न अब तक मिला है और न मिलेगा. अतः आपसे सह्रदय आग्रह है कि आप संतितोत्थान एवं जीवन को जीवंत बनाने के लिए भरत चरित्र पढ़िए ही नहीं बल्कि पारिवारिक उत्थान के लिए अपने घर में अवश्य रखिए  जिससे उसके दर्शनमात्र से परिवार एक सही राह का अनुशरण करें. मैं इस महती कार्य के लिए महाकवि श्री भगवान सिंह हंसजी को बधाई देता हूँ और उनको शत-शत नमन करता हूँ.


महाकाव्य के कुछ अंश आपके दर्शनार्थ-

नभ से लखें देव गन्धर्वा. राम  रावण   युद्ध   बहु    गर्वा.
दोनों पक्ष रण में समाना. इंद्र बिलोक सर्व रण जाना.
आकाश से देवता और गन्धर्व देखते  हैं कि राम तथा रावण का युद्ध बहुत ही गौरवान्वित है. दोनों पक्ष युद्ध में समान हैं .इंद्रदेव ने अबलोकन करके सब युद्ध जान लिया.
शचीपति ने मातलि पुकारा. लख  भू    से    राम   करे   वारा.
मम रथ जाकर प्रभु को देना सुरहित कार्य सिद्ध कर देना.
तुरंत शचीपति इंद्र ने अपने सारथि मातलि को पुकारा और कहा, देखो, पृथ्वी से राम रावण पर संधान कर रहे हैं. मेरा रथ लेजाकर राम को दो और सुरों के हित में कार्य सिद्ध करो.
सारथि ने इंद्र रथ संवारा. प्रभु राम   को दिया साभारा.
व्योम से बिलोक इन्द्र्देवा. स्वरथ  भेजा राम की सेवा.
फिर तो सारथि मातलि ने इंद्र का रथ संवार लिया और लेजाकर प्रभुश्रीराम को साभार दे दिया. आकाश से इंद्रदेवजी देखते हैं कि मेरा रथ राम की सेवा में दे दिया.
राम तुरंत रथ पर सवारा. दुर्जय   वीर सर्व संसारा.
राक्षसों पर विषद संधाना. मरे पड़े इत उत  बहु नाना.
राम तुरंत इंद्र के रथ पर सवार हो गए. श्रीराम संसार में दुर्जय वीर हैं. राम ने राक्षसों पर विषद वाणों का संधान किया. नाना राक्षस इधर उधर मरे पड़े हैं.

प्रस्तुतकर्ता-

योगेश








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