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Thursday, December 22, 2011

अरविंद पथिक: दो मुक्तक

अरविंद पथिक: दो मुक्तक: व्यर्थ के काम ही ज़िंदगी हो गयी दर्द के नाम ही ज़िंदगी हो गयी नाम जबसे स्वयम को दिया है ट्रेन;बस,ट्राम ही ज़िदगी हो गयी हर चेहरे के ...

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