जयलोकमंगल में अरविंद पथिक और भगवानसिंह हंस की रचनाएं पढ़ रहा हूं। आनंद आ रहा है। बीच-बीच में योगेश विकास हंस भी प्रकट हो जाते हैं। अच्छा लगता है। कल टेळीफोन पर घमश्याम वशिष्ठ ने अपनी व्यस्तताएं बताईं। इतनी घोर व्यस्तता में भी वो लिख पा रहे हैं यह आनंद और आश्चर्य दोनों की ही बात है। आजकल लिखना ही तो सबसे मुश्किल काम हो गया है। चलिए फिर भी लोग लिखते रहें इन्हीं कामनाओं के साथ....
पंडित सुरेश नीरव
पंडित सुरेश नीरव
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