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Sunday, December 18, 2011

laghukatha

लघुकथा
और जल उठे दिए
नाम की पगार पर घर - गृहस्थी में क़तर-ब्योंत कर दीपावली के लिए चार पैसे जुटा ही लिए थे | मुन्नू भी पटाखों के लिए मचल रहा था | कल दिवाली पर मुन्नू पटाखों वास्ते किल-किल करेगा | सो चल दिया वह बाज़ार | भर रास्ते भुनभुनाता रहा | सुलगता रहा | खुद से उलझता रहा | कितने पटाखे ला पायेगा इन पैसों में | महंगाई तो अच्छे अच्छों के लेंटर हिला देती है | अनार , फुलझड़ी, चटाई , रॉकेट , चकरी , बम और न जाने क्या - क्या | अपने एक बच्चे को भी वह खुश नहीं रख पता | क्या करे ? लेबर की नौकरी भी कितनी मुश्किल से मिली थी | कोई छुट्टी नहीं , आधी छुट्टी नहीं | सरला बेचारी तो कभी कुछ नहीं मांगती | खुद भी वह सिकुड़ा रहता है | चलो भई, नसीब अपना-अपना |
यकायक दांयी टांग पर उसे कुछ दबाब महसूस हुआ | झुकाई नज़र तो चार- पाँच की वय का बच्चा छोटी सी डलिया में रूई लिए उसकी पेंट खींच रहा था- --'ले लो छाब [साब] ! लुई [रूई] लेलो | छाली [सारी ] तीन लुपे [रुपे ] में '| ' ओह भगवान !कितना निर्मम है तू | क्रूर है तू | तरस खा इन यतीमों पर | जिन्दगी के आँचल में मौत छुपा कर दे रहा है इनको '| मिचला गया मन | परतों तक उद्वेलित कर गया | फटी निक्कर व एक बांह की कमीज पहने बींध गया अंतर्मन | क्या करे दे दे पैसे इस गरीब अनाथ को जिसका बचपन तुतुलाना भी न छोड़ पाया था , ठीक उससे पहले ही निर्दयी बाज़ार ने हाथों -हाथ लपक लिया मासूम को | क्या जवाब देगा मुन्नू को जो कब से पटाखों के आगमन की ख़ुशी में खिल-खिल जाता है |
हाथों में उठा उस नन्हे क्रेता को ला खड़ा किया मुन्नू के सामने -' बोलो बेटा ! इसको कपडे दिलाऊँ या तुम्हें पटाखे ?' सकपकाई आँखें डबडबा
गई देखते ही उस नन्हे गरीब को | क्या कहे वह नन्हा मासूम ? पटाखों की रौशनी कितनी सुन्दर ! लाल, गुलाबी, नीली, पीली, रौशनी से भीगे , लबालब चमकीले झरते फूल | आहा! कितने मनोहर , कितने मोहक ! रंग-बिरंगी फुलवारी छोड़ता ऊपर उड़ता रॉकेट | घूमती चम्-चम् इठलाती चरखी और बम की आवाज --- धूम-धाम , चटक- पटक, भां-भां ....................फिर फुस्स | ख़तम | राख़ का ढेर | अगले दिन ढेर कूड़ा ............और यह नन्हा बच्चा ........? ' पापा ...... इसे कपडे दिला दो |'
सीने से चिपका लिया अपने नन्हे देवदूत को उसने | कितना प्यार , ममता , त्याग है छोटे बच्चे के दिल में | यही प्यार तेरी पूरी दुनिया के दिल में होता तो इसका रंग ही विरला होता | उसने गरीब के कपड़ों के साथ दो पैकेट फुलझड़ियाँ भी ले ली | दीपावली पर नन्हा गरीब और उसका मुन्नू दोनों फुलझड़ी जलाते हुए खिलखिला रहे थे | उनकी मुस्कान दीपावली की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान कर रही थी | कितने बरसों बाद आज की दिवाली उसे बहुत सुन्दर लग रही थी |
..................... शोभा रस्तोगी शोभा

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