रबड की रीढ वाले लोग
बढते जा रहे हैं
स्वाभिमानी सहमे हैं
घबरा रहे हैं
बज रहा जो योग्यता का ढोल
उसकी पोल में क्या है?
समझते है
आकाश का ठेका बाज़ों ने लिया है
परिंदो को कहां उडना है
वे बतला रहे हैं
रबड की रीढ वाले लोग बढते जा रहे हैं
तुम्हारी चाल कैसी ?
ढाल कैसी ढंग कैसा?
तुम्हारे रूप यौवन पर फबेगा रंग कैसा?
ना जिनके मूल्य कोई वे हमें सिखला रहे हैं
रबड की रीढ वाले लोग बढते जा रहे हैं
गीत गायें या लतीफे हम सुनायें
फैसला यह मूर्ख औ ढोंगी करेंगे
ओजधर्मीं स्वर सहम कर मौन होंगे
मंच पर नर्तन मनोरोगी करेंगे
काले मेघ काव्याकाश पर मंडरा रहे हैं
रबड की रीढ वाले लोग बढते जा रहे हैं
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