पीते रहे हैं शाम से, आँखों के जाम से
अब ज़रा दूर रखो, कांच के पैमाने को।
बिजलियाँ, काली घटा, चाँद से रौशन चेहरा
फिर सुनाएंगे कभी, चैन से अफ़साने को।
उम्र तो बीत चली, इंतज़ार में अपनी
कब क़रार आएगा, साक़ी तेरे दीवाने को।
उसकी किस्मत है जल के मर जाना
फिर भी शम्मा से रही दोस्ती परवाने को।
मृगेन्द्र मक़बूल
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