पंडित सुरेश नीरव |
पंडित सुरेश
नीरव
मध्यप्रदेश ग्वालियर
में जन्मे बहुमुखी रचनाकार पंडित सुरेश नीरव की गीत-गजल,हास्य-व्यंग्य और मुक्त
छंद विभिन्न विधाओं में सोलह पुस्तकें प्रकाशित हैं। अंग्रेजी,फ्रेंच,उर्दू में
अनूदित इस कवि ने तीस से अधिक देशों में हिंदी कविता का प्रतिनिधित्व किया है।
हिंदुस्तान टाइम्स प्रकाशन समूह की मासिक पत्रिका कादम्बिनी के संपादन मंडल से तीस
वर्षों तक संबद्ध और सात टीवी सीरियल लिखनेवाले सृजनकार को भारत के दो
राष्ट्रपतियों और नेपाल की धर्म संसद के अलावा इजिप्त दूतावास में सम्मानित किया
जा चुका है। भारत के प्रधानमंत्री द्वारा आपको मीडिया इंटरनेशनल एवार्ड से भी
नवाजा गया है। आजकल आप देश की अग्रणी साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय भाषा साहित्य
सम्मेलन के राष्ट्रीय महासचिव हैं। प्रस्तुत हैं इनकी दो विशिष्ट
ग़ज़लें।
-संपादक
दो ग़ज़लें
जल रहा कोई और है...
आग
से तो मैं घिरा हूं जल रहा कोई और है
मंजिलें
मुझको मिलीं पर चल रहा कोई और है
तू
ही कह ऐ मन के सांचे अब तुझे ये क्या हुआ
ढालना
चाहा किसी को ढल
रहा कोई और है
कर
भलाई भूल जाना
ये जमीं से सीखिए
फर्ज़
धरती ने निभाया
फल रहा कोई और है
पेड़
मेरी आत्मा हैं पेड़
हैं बच्चे मेरे
क्या
हुआ बोली जमीं जो फल रहा कोई और है
देख
जलती मोमबत्ती ये ख़याल आया मुझे
नाम
बाती का हुआ पर गल रहा कोई और है
आती-जाती
सांस की हलचल ने मुझसे ये कहा
जिस्म
तो नीरव है जिसमें पल रहा कोई और है।
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जिसने जगाया है मुझे...
कोई
भी ना इस जहां में जान पाया है मुझे
शुक्रिया
नगमा जो तूने रोज़ गाया है मुझे
डूबता
हूं रोज़ खुद में तुम तलाशोगे कहां
दिल
बेचारा खुद कहां ही ढूंढ़ पाया है मुझे
आग
है पानी के घर में आंसुओं की शक़्ल में
जिसकी
मीठी आंच ने पल-पल जलाया है मुझे
कितने
जंगल कत्ल होंगे इक सड़क के वास्ते
एक
उखड़े पेड़ ने बेहद रुलाया है मुझे
मैं
अंधेरे से लड़ा हूं उम्रभर इक शान से
और
ये किस्मत की सूरज ने बुझाया है मुझे
उसने
कुछ मिट्टी उठाई और हवा में फेंक दी
ज़िंदगी
का फलसफा ऐसे बताया है मुझे
लफ्ज़
कुछ उतरे फलक से और ग़ज़ल में सो गए
कैसी
है ये नींद कि जिसने जगाया है मुझे।
पंडित
सुरेश नीरव
आई-204,गोविंदपुरम,ग़ाज़ियाबाद-201013
मोबाइलः09810243966
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