दो मुक्तक
 दो मुक्तक
किसी बिगडैल नाजनीन की चाहत  नहीं हैं ,हम 
जिंदगी को    आपकी इनायत नहीं हैं  ,      हम
 तप करके वक्त की भट्टी में  निखरे         हैं 
जिंदा हैं ,इन्कलाब हैं ,रिवायत   नहीं  हैं ,हम 
ऐसा नहीं किसी को चाहा नहीं  कभी 
ऐसा नहीं किसी ने  चाहा नहीं कभी 
कमजर्फ नहीं हम बाज़र्फ़ लोग हैं 
सो चाहतों का ढोल बजाय नहीं कभी 
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
No comments:
Post a Comment