अँधेरों से मिरा रिश्ता बहुत है
मै जुगनू हूँ , मुझे दिखता बहुत है
वतन से तुम कभी हिजरत न करना
मुहाजिर आँख में चुभता बहुत है
किसी मौसम की फितरत जानने को
शजर का एक ही पत्ता बहुत है
खुशी से उसकी तुम धोखा न खाना
परेशानी में वो हँसता बहुत है
मरासिम का पता देती है आँखें
जुबां से वो कहाँ खुलता बहुत है
मियां उस शक़्स से हुशयार रहना
सभी से झुक के जो मिलता बहुत है
- मालिकजादा जावेद
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