आज भाई अरविंद पथिक की सार्थक टिप्पणी पढ़कर बहुत गहरे सोच में पड़ गया हूं। जहां एक और ये जज्बा था कि हम अपने से बड़ों का सम्मान करें तब सचमुच में लोग बड़े ही नहीं विराट भी हो जाते थे। आज कदहीन और बौनौ का दौर कुछ ऐसा है कि बेटे अपने पिता का भी सम्मान नहीं करना चाहते। मां की हत्या कर देते हैं। ऐसे में अग्रज सम्मान दिवस मनाने का सात्विक विचार शाहजहांपुर की मिट्टी का ही संस्कार हो सकता है। मैं आनंदित हूं और अभिभूत भी। काश अग्रज भी अपने बड़प्पन को अपने व्यवहार से सिद्ध कर पाते। चलिए राह पर पैर चले हैं तो मंज़िल भी मिलेगी ही। शहीदे आजम के बलिदान दिवस की तारीख दिल में देशभक्ति की मशाल बनकर सांस की आखिरी लौ तक जलती रहे इसी कामना के साथ..जयहिंद.।
पंडित सुरेश नीरव
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