हास्य कविता-
ब्यूटी पार्लर
एक दिन हमारी ऑरीजनल पत्नी
यानी कि मिर्च की चटनी बिना सूंड़ की हथनी
कुनैन की गोली मूड में आकर हमसे बोली
अजी सुनते हो आज तो मैं भी ब्यूटीपार्लर जाऊंगी
और अपने चेहरे का रंग-रोगन कराऊंगी
हमने कहा भागवान देखा है
अपने चेहरे का मास्टर प्लान
बड़ी-से-बड़ी एक्सपर्ट भी तुझसे हार मान जाएगी
चेहरे कि डिजायन ऐसी है कि
इसपर तो सिर्फ प्लास्टिक सर्जरी ही काम आएगी
वेसे औसतन वह एक प्रस्ताव प्रति सेकरंड की दर से
सुंदरता का एक नया फार्मूला फेंकती रहती है
सुंदर इतनी कि उसकी दायीं आंख हमेशा बायीं आंख को देखती रहती है
हमने उसे समझाते हुए कहा कि हे तारकोलवर्णी,ग्रहसुख हरणी
प्राणों की प्यासी,सदा सत्यानाशी एक बात याद रख कि-
बूढ़ी घोड़ी की कभी मालिश नहीं होती
और टायर की चप्पल पर कभी पॉलिश नहीं होती
इसलिए सोते से जाग और ब्यूटी पार्लर जाने का इरादा त्याग
वैसे भी तेरी रोज़-रोज़ की फरमाइश से हमारी आत्मा दुखी हो गई है
तू भले ही चंद्रमुखी या सूर्यमुखी रही हो आज तो पूरी ज्वालामुखी हो गई है
तेरी एक ही मुलाकात ब्यूटी पार्लर के लिए श्राप बन जाएगी
तेरे गर्म तवे जैसे होठों पर उसने लिपिस्टिक लगा भी दी
तो एक मिनट में भाप बन जाएगी
हे शुर्पणखा की कजिन सिस्टर
तेरे खंड-खंड मेकअप से सने अखंड चेहरे को देखेगी
तो वो बेचारी थर-थर कांपेगी डर के मारे दोनों हाथों से अपना चेहरा ढांपेगी
कभी घबड़ाहट में एक सीढ़ी उतरेगी तो दो सीढ़ी चढेगी
और बार-बार यही मंत्र पढ़ेगी कि
जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू
ये आयटम है फालतू।
पंडित सुरेश नीरव
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