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Friday, August 3, 2012

आंदोलन क्रांति बनना तो दूर मज़मा बन कर रह गया


आंदोलन क्रांति बनना तो दूर मज़मा बन कर रह गया


अन्ना द्वारा आंदोलन वापस लेने से वातावरण में निराशा व्याप्त है।ये निराशा और ज्यादा सघन इसलिये है क्योंकि अन्ना ने राजनीति में आने का फैसला किया है।इस आंदोलन की रीढ वे युवा थे जो 'राजनीति को डर्टी' मानते हैं।ये युवा खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।ये वे युवा हैं जो वोट डालने नहीं जाते पर सब कुछ उलट -पलट देना चाहते हैं।इनके तन पर कपडे भले विदेशी हो पर दिल पूरी तरह से हिंदुस्तानी है। जो देश पर गर्व करता है देश के लिये सब कुछ नष्ट -भ्रष्ट कर सकता है और खुद को बलिदान भी कर सकता है।ये किसी का वोट बैंक नही है।राष्ट्रीयता की बात चलने पर स्वयं को बी जे पी के करीब पाता है पर राममंदिर के लिये जो रवैया बी जे पी ने अख्तियार किया उससे सहमत नहीं। ना तो वह आडवानी के तौर -तरीको से सहमत ।ये वर्ग मोदी के विकास और हिंदुत्व से प्रभावित है पर गुजरात दंगों से नाखुश।ये रामदेव के साथ नही जा सकता क्योंकि बौद्धिक तौर पर रामदेव उसे अपील नहीं करते ।अरविंद केज़रीवाल का 'इनकम टैक्स-कमिश्नर' पद से त्याग और आर० टी०आई० आंदोलन का संघर्ष उसे चमत्कृत करता है क्योकि काली कमाई के सुखो का उपभोग कर रहा ये वर्ग काली कमाइ का त्याग करने वाले को फौरन महान मान लेता है।
स्वयं त्याग को प्रस्तुत हो जाता है।आज के नायक विहीन समाज में वह अन्ना टीम के लोगों में अपने लिये नायक तलाश करता है।
 अन्ना टीम की त्रासदी यह है कि यहां कोई सर्वोच्च सत्ता नहीं ,अन्ना प्रतीक भर हैं।बाकी कोई लोकप्रियता से आकर्षित होकर आया है तो कोई विस्तार के नये क्षितिज तलाशने।कोई अन्ना आंदोलन को अपनी कमाई बढाने का ज़रिया बनाने आया तो कोई अपने करियर को नये आयाम देने।राजनीति में जाने में बुराई क्या है? अच्छे लोग राजनीति में नही गये और गये तो बुरे से भी बुरे हो गये इसी से राजनीति की आज ये दशा और दिशा है। मैं यह नही कहता कि ये लोग राजनीति में जाकर बुरे हो जायेंगे।ये अवश्य ही अच्छे बने रहेंगे क्योंकि ये मूलतः अच्छे लोग हैं पर इन्हें वोट कौन देने वाला है? जो इनका वोटर हो सकता था  वह तो निराश होकर घर बैठ जाने वाला है वह इन्हें क्या किसी को भी वोट नहीं देगा।सुदर्शन चैनल ने कल जिस तरह से इनकी पार्टी का नाम ,अध्यक्ष और महासचिव घोषित किये और यह सिद्ध 
करने का प्रयास किया कि सब कुछ पूर्व नियोजित था उससे पता चलता है कि संघ ने इनका विरोध करने का फैसला किया है।जो स्वाभाविक भी है क्योंकि अन्ना पार्टी से सर्वाधिक नुकसान बी जे पी को होने वाला है।कांग्रेस का वोट भी घटना तय है क्योंकि कांग्रेस के रवेये से गुस्सा तो हर वर्ग में है।ऐसे में जाति और संप्रदाय आधारित पार्टियों को लाभ होगा क्योंकि उनका वोटर किसी भी कीमत पर उनका साथ नही त्यागेगा।बी जे पी का संघ से संबद्ध कार्यकर्ता जोकि निरंतर घट रहा है  उसके भी खुलकर  बी जे पी के समर्थन मे आने की समभावना कम है ।संजय जोशी-मोदी विवाद और कुशवाहा प्रकरण में गडकरी का रोल कार्यकर्ता को निराश करेंगे।
कुल मिलाकर घोर निराशा का दौर।
आखिर कमी कहां रह गयी--?विश्लेशषण में ना जाकर सीधे निष्कर्ष पर आता हूं ।बलिदान के लिये आवश्यक साहस और इच्छा शक्ति का अभाव।इस अभाव में ही ये 
आंदोलन क्रांति बनना तो दूर मज़मा बन  कर रह गया।बलिदान का तात्पर्य यह नही कि इनमें से किसी को प्राण त्यागने की ज़रूरत थी पर जेल तो जा सकते थे--कुछ तो ऐसा करते जिससे उस युवा को जो आपको फेसबुक पर दिन रात शेयर कर रहा था,जो कांटों पर लेटकर अनशन कर रहा था कम से कम फेस सेविंग का अवसर तो मिल पाता'।ये दिल्ली मुंबई के लोग उनकी मनोदशा नहीं समझ पायेंगे जो छोटे-छोटे गांव कस्बो तक में अन्ना के लिये पडोसियों से झगडा करते हैं वे आपके बौद्धिक तर्क खुद भले ही समझ जायें पर दूसरों को कैसे समझायेंगे?आर-पार का मतलब राजनीतिक पार्टी का गठन---------------ये किस शब्दकोश में है भाई।मुलायम सिंह बधाई हो  आप देश के अगले प्रधानमंत्री हैं।अरविंद पथिक और पं० सुरेश नीरव जैसे  अन्ना टीम टाइप लोगों को करीब से जानने वाले देश को हताश देखने -और पीछे 
जाते देखने को अभिशप्त हैं।

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