बलात्कार को लेकर कल मैंने जो पोस्ट लिखी उस पर कई मित्रों के लिचार आए। सोचा कि सिलसिलेवार उनके जवाब में दे दूं। पेश है वही कोशिश..
धन्यवाद राहुल उपाध्यायजी,कवि रामकेश यादवजी,श्री हीरालालपांडेयजी, धीरज चौहानजी,अभिषेक चौहानजी और पीयूष चतुर्वेदीजी। सबसे पहले तो आप सभी का आभार कि आपने समाज की एक घृणित समस्या पर गंभीरता से विचार करने का मन बनाया और विस्तार से अपनी बात कही भी। अधिकांश लोगों ने फेसबुक पर हर समस्या के समाधान का ठेका पसंद है के टोटके के भरोसे ही छोड़ दिया है। वे कुछ टिटरू-टूं लिख देते हैं तो फिर रिक्वेस्ट भेजते हैं कि मेरी पोस्ट को प्लीज लाइक कर दीजिए, कुछ टिप्पणी कर दीजिए.. और फिर खामोश हो जाते हैं। कुछ खाली अपनी फोटो ही डालते रहते हैं। ऐसे आत्ममुग्ध फेसबुकियों की तरह ही आज का समाज भी है। जो हर बात में अपना फायदा देखते हैं। और कुछ नहीं तो चलो इसके बूते आत्मप्रचार ही हो जाए। उनके लिए हर हादसा एक इंटरव्यू देने का बहाना है इससे ज्यादा कुछ नहीं। तमाम समाजसेवी संस्थाएं हादसा होते ही मीडिया से संपर्क करती हैं कि हमारा इंटरव्यू हो जाए इस मुद्दे पर। समस्या मगर वहीं खड़ी-की खड़ी रह जाती है। पीयूष चतुर्वेदी ने जो कहा है उससे में सहमत हूं। मां-बाप पहली पाठशाला होते हैं। जब वहीं से उन्हें नैतिक शिक्षा नहीं मिलती तो फिर ऐसे अपराधी ही समाज को मिलते हैं। जरूरत है आज समाज में नैतिक शिक्षा की जिसे चिरकुट नेताओं ने पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया है। क्योंकि मेरी कमीज़ से उसकी कमीज़ ज्यादा सफेद क्यूंवाला मामला है। भ्रष्ट नेताओं और हरामखोर अफसरों की फसल भी उसी परिवार से आती है जहां से अन्य अपराधियों की आती है। राहुल की चिंताभी बाजिब है कि दो-तीन दिन के शोर शराबे के बाद फिर वही पुराना ढर्रा..हमें कुछ सॉलिड सोचना और करना होगा वरना नाम बदल जाएंगे और अपराध यूं ही होते रहेंगे।
धन्यवाद राहुल उपाध्यायजी,कवि रामकेश यादवजी,श्री हीरालालपांडेयजी, धीरज चौहानजी,अभिषेक चौहानजी और पीयूष चतुर्वेदीजी। सबसे पहले तो आप सभी का आभार कि आपने समाज की एक घृणित समस्या पर गंभीरता से विचार करने का मन बनाया और विस्तार से अपनी बात कही भी। अधिकांश लोगों ने फेसबुक पर हर समस्या के समाधान का ठेका पसंद है के टोटके के भरोसे ही छोड़ दिया है। वे कुछ टिटरू-टूं लिख देते हैं तो फिर रिक्वेस्ट भेजते हैं कि मेरी पोस्ट को प्लीज लाइक कर दीजिए, कुछ टिप्पणी कर दीजिए.. और फिर खामोश हो जाते हैं। कुछ खाली अपनी फोटो ही डालते रहते हैं। ऐसे आत्ममुग्ध फेसबुकियों की तरह ही आज का समाज भी है। जो हर बात में अपना फायदा देखते हैं। और कुछ नहीं तो चलो इसके बूते आत्मप्रचार ही हो जाए। उनके लिए हर हादसा एक इंटरव्यू देने का बहाना है इससे ज्यादा कुछ नहीं। तमाम समाजसेवी संस्थाएं हादसा होते ही मीडिया से संपर्क करती हैं कि हमारा इंटरव्यू हो जाए इस मुद्दे पर। समस्या मगर वहीं खड़ी-की खड़ी रह जाती है। पीयूष चतुर्वेदी ने जो कहा है उससे में सहमत हूं। मां-बाप पहली पाठशाला होते हैं। जब वहीं से उन्हें नैतिक शिक्षा नहीं मिलती तो फिर ऐसे अपराधी ही समाज को मिलते हैं। जरूरत है आज समाज में नैतिक शिक्षा की जिसे चिरकुट नेताओं ने पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया है। क्योंकि मेरी कमीज़ से उसकी कमीज़ ज्यादा सफेद क्यूंवाला मामला है। भ्रष्ट नेताओं और हरामखोर अफसरों की फसल भी उसी परिवार से आती है जहां से अन्य अपराधियों की आती है। राहुल की चिंताभी बाजिब है कि दो-तीन दिन के शोर शराबे के बाद फिर वही पुराना ढर्रा..हमें कुछ सॉलिड सोचना और करना होगा वरना नाम बदल जाएंगे और अपराध यूं ही होते रहेंगे।
No comments:
Post a Comment