बलात्कार की घटना को सनसनी बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि कि समाज के उस सामूहिक -मन का भी गहन अध्ययन किया जाए जो अपराध के क्षणों में संगठित होकर अपराधकर्म में सहकारिता दिखाता है। पांच-छह लोगों के बीच कभी कोई एक भी आवाज़ इस कुकृत्य के विरोध में क्यों नहीं खड़ी होती। क्या वे बलात्कारी बलात्कार को अपराध नहीं मानते,अपराध की सजा का क्या उन्हें भय नहीं होता। क्या समाज द्वारा ऐसे लोगों ने कभी कोई सामाजिक-बहिष्कार कभी झेला है। जब तक इन मुद्दों पर गंभीरता से चिंतन-मंथन नहीं होगा इस अभिषाप से मुक्ति मिलना कठिन ही नहीं असंभव-भी जान पड़ती है। |
No comments:
Post a Comment