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Thursday, December 6, 2012

गिरीश पांडे की सार्थक ग़ज़ल

मैं तो डायरियाँं लिखता अनायास रहा
मुझे क्या पता कि ये उपन्यास रहा । 1
जीवन में लड़ाइयाँ रहीं इतनी तरह की
चन्द्रगुप्त, चाणक्य कभी वेदव्यास रहा। 2
न जीवन से दूर न आध्यात्मिकता से
ऐसा ही सहज मेरा संन्यास रहा। 3
आँखों को खोल के ही किया है ध्यान
हमेशा ही विवेक व होशो हवास रहा। 4
जब भी सृजन का रहा जुनून
तन या मन पर न कोई लिबास रहा। 5
हमने ही तो सब की भाषा समझी है
जो भी पेड़-पौधा, पशु-पक्षी आसपास रहा। 6
अब विश्वयुद्ध संवेदनाओं से जीता जाएगा
भले ही अब तक न कोई ऐसा इतिहास रहा। 7
व्यक्ति का नहीं, मुद्दों का विरोध करता हूं
किसी के प्रति मन में न एहसासे खटास रहा। 8
मैं चलता रहा गज़लों में पूरा संसार भरके
आग-पानी, मौसम, समाज, खटास-मिठास रहा। 9
चारों ओर तू ही तू तो है छाया हुआ
मैंने जिधर देखा तेरा ही उजास रहा। 10
हर पल में नयी शुरूआत की संभावना रही
हर इक सांस में एक नया शिलान्यास रहा। 11
तुम्हारी कोशिशें रंग लायेंगी एक दिन
उनमें हमेशा ही भरा एक विश्वास रहा। 12
समझता बुनता रहा सृष्टि में रिश्तों के ताने-बाने
वही मेरे िलए चरखा, सूत-कपास रहा। 13
सच्चे, गहरे व तीखे भावों का असर होगा जरूर
भले ही न ठीक वाक्य-विन्यास रहा। 14
आँखें निष्पक्ष थीं इसीलिए सब कुछ दिखा
निर्दोष, पूर्ण-दृष्टि रही, न कि महज़ क़यास रहा। 15
जो कुछ हुआ, सहज ही होता चला गया
नहीं कुछ भी कभी जबरन या सप्रयास रहा। 16
मेरी हर राह आम आदमी से होकर गुज़री
भले ही किसी के लिए वह ग़ैर ज़रूरी प्रयास रहा। 17
संसाधनों पर सारे जीवों का हक है बराबर
किसी के पास जो भी रहा महज़ एक न्यास रहा। 18
चुल्लू से पानी पीने को रहा तैयार सदा
क्या फ़क़र्, पास में कभी लोटा न गिलास रहा। 19
वह सीधी सादी भाष्‍ाा में बात कह गया
उसमें न कोई अलंकार या अनुप्रास रहा। 20
रिश्ते बढ़ते ही गये दूरियों के बावजूद
भले ही न वह हमेश्‍ाा हमारे पास रहा। 21
वह चलता ही रहा अपने सार्थक सपनों के लिए
लोगों के लिए तो वह अक्सर निशानये उपहास रहा। 22
हमेशा ही सबसे जुड़ा होने का खुलापन
और इसका अभ्यास ही उसका राज़े सुवास रहा। 24
तेरी जरूरत नहीं पड़ी किसी भी मुक़ाम पर
पर यही क्या कम कि साथ तेरा एहसास रहा। 25
जाम चुक गया बेसबब तो क्या हुआ
ये क्या कम था सामने ख्‍़ााली गिलास रहा। 26
जिंदगी उम्मीद की टिमटिमाहटों से कट जाती है
पानी भले न मिला, बादल तो आसपास रहा। 2
मैं न धुना जा सका और न ही बुना
मैं सूत न बन पाया, सदा कपास रहा। 29
हवा, आर्द्रता, रोशनी तो सारे जग से मिली
जड़ों का भोजन तो ठिकाने के आस-पास रहा। 30
कभी आँसुओं, कभी नदियों, सज्जनों, पेड़ों के
रहा बगल में, यही तो मेरा कल्पवास रहा। 31
साधना करनी पड़ी है जब पाना चाहा है ईश्वर के किसी खंड को
लेकिन विराट ब्रह्म तो बिन प्रयास ही हमेशा आसपास रहा। 32
-गिरीश पांडे

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