प्रकाश प्रलयजी,
आपकी शब्दिकाओं का मैं भरपूर और नियमित आनंद ले रहा हूं और अपनी टिप्पणी भी नियमतः दे ही रहा हूं। हालत ये हो गई है कि आपकी शब्दिका कभी-कभार न भी आ पाए तो भी मेरी टिप्पणी उछलकर पहले ही बाहर आ जाती है। और चारो तरफ सूंघ-सांघकर जब कभी और कहीं उसे आपकी शब्दिका उसे नहीं मिलती है तो बेचारी मुंह लटकाकर वापस आ जाती है।फिर उसे समझाने-मनाने में मुझे काफी टाइम लग जाता है। कृपया मेरी टिप्पणी के बारे में सोचते हुए रोज़ ही कुछ-न-कुछ लिख दिया करें। न लिख पाएं तो भी लिख दिया करें।मेरी बात को आप लाइटली बड़ी सीरियसली लेना। क्योंकि टिप्पणी की सेहत का मामला है।उम्मीद है आप इस वक्त भी जहां कहीं होंगे शब्दिका लिख रहे होंगे। आपकी शब्दिका को मेरी टिप्पणी की नमस्ते।000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
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