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Sunday, January 20, 2013

परंपराओं का हो रहा क्षरण

बाएं से अरविंद पथिक,दिरीश मिश्र,डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी और पंडित सुरेश नीरव
परंपराओं का हो रहा क्षरण
वैचरिक अनुष्ठान में शामिल हुए नामचीन लेखक
रपटःसुभाष मिश्रा
रायपुर। जीवन को उत्सव की तरह मनाएं। उपनिषदों का भी यही आशय है। परंपरा और आधुनिकता एक दूसरे के पूरक हैं। परंपराएं समाज में निर्मित होती हैं। इसमें एक-दूसरे को जोडऩे का भाव समाहित है। किंतु भाषा के उद्गम से कटने के कारण शब्दों के अर्थ भी खोते जा रहे हैं। आज जीवन का कोई उत्सव नहीं बचा जहां बॉलीवुड के नृत्यों ने प्रवेश न किया हो। परंपराओं का न केवल क्षरण हो रहा है बल्कि इनका विकृत स्वरूप भी हमारे सामने आ रहा है। हमारे वेदों में उल्लेखित वसुधैव कुटुंबकम् का आशय भी यही है कि परंपराएं एक सूत्र में बांधती हैं। उपरोक्त उद्गार आज एक वैचारिक अनुष्ठान में सुपरिचित लेखक, निर्देशक, अभिनेता तथा चाणक्य और उपनिषद गंगा के निर्माता डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने व्यक्त किए।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राधाकिसन स्मृति राष्ट्रीय वैचारिक अनुष्ठान तथा संगवारी पोस्ट अवार्ड समारोह के मौके पर आज संध्या वृंदावन सभागार में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. द्विवेदी के अलावा अरविंद पथक, तथा सुरेश नीरव ने आज के संदर्भ में परंपराएं तथा आधुनिकता विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। इस मौके पर संगवारी पोस्ट अवार्ड के लिए चयनित ब्लॉगर बीएस बावला, जीके अवधिया तथा नवीन प्रकाश, कल्पेश पटेल, अमरजीत सिंह, सुधीर तंबोली को सम्मानित किया गया। समारोह इसलिए भी यादगार बन पड़ा चूंकि आज ही के दिन वरिष्ठ पत्रकार बबनप्रसाद मिश्र की हीरक जयंती का भी अवसर था। विभिन्न संस्थाओं के अलावा उन्हें संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने भी सम्मानित किया। संस्कृति मंत्री ने बबन मिश्र को एक संस्था बताते हुए कहा कि आज के दौर में समाज को राज्याश्रय से मुक्त करने की जरूरत है।
इस अवसर पर बबनप्रसाद मिश्र की सातवीं पुस्तक पहटिया का भी विमोचन अतिथियों ने किया। भोपाल से पधारे वरिष्ठ पत्रकार तथा माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष संजय द्विवेदी ने बबनप्रसाद के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने श्री मिश्र की नई पुस्तक पहटिया में सामाजिक परिवर्तनों के साथ समाज के चित्रण का उल्लेख किया।
विषयांतर्गत परिचर्चा के संदर्भ में अरविंद पथक ने कहा उनका परिचय सोशल मीडिया के जरिए बबन जी से हुआ। इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया की विसंगतियां बताते हुए उन्होंने कहा कि यह माध्यम अपने दायित्वों से विचलित हो चुका है। इसी तरह सोशल मीडिया के स्वच्छंद आचरण के खतरे भी उन्होंने बताए। संगवारी जैसे ब्लॉग में आज पूरी जिम्मेदारी के साथ 40-50 लेखक लेखन कर रहे हैं।
सुरेश नीरव ने बबनप्रसाद मिश् को साधनावृद्ध, तपोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध की उपमा देते हुए कहा कि वे उनकी हीरक जयंती के मौके को किसी तीर्थ से कम नहीं मानते। परंपरा और आधुनिकता दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं। मतिृस्मृति, प्रज्ञा जब मिलती है तब मेधावी बनता है। लेखक की प्रतिष्ठा अमरत्व को प्राप्त होती है। बबन जी को यह वरदान मिला है। भाषा के संदर्भ में उनका स्पष्ट मत था कि आज इसके साथ खिलवाड़ हो रहा है। भाषा का अर्थ है नाद। इसका सीधा संबंध नदी से भी है। मनुष्य भी तीथ4 हो सकता है यदि उसमें भाषा प्रवाहित होती है। लिहाजा माध्यमों का प्रयोग भी किसी बांसुरी की तरह होता है। जिसमें आपके संस्कार परिलक्षित होते हैं।
गोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि जो ऊपर से नीचे प्रवाहित हो वही परंपरा है। जो शुभ है, कल्याणकारी है वह पुरातन काल से अब तक प्रवाहित होता रहा है। इसी तरह जो स्थाई नहीं है किंतु प्रशंसा के योग्य है वह आधुनिक है। बदलाव के साथ असहज होना ही असंतुष्टि का कारण है। परंपराएं समूह में निर्मित होती हैं। किंतु काल के प्रवाह में चीजों को छोडऩे की छटपटाहट होती है। इसकी चुनौतियों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि भाषा के उद्गम से कटने के कारण इसके अर्थ भी नष्ट होते जा रहे हैं। इस संदर्भ में उन्होंने यज्ञ, समिधा, ऋषि, साधक जैसे शब्दों के अर्थोे को स्पष्ट किया। शब्दों से दूर होने के कारण ही आज हमारी संस्कृति का विकृत स्वरूप हमारे सामने है। आज कोई भी ऐसा उत्लव नहीं बचा जहां बालीवुड के नृत्यों ने जगह न बनाई हो। यूं कहें कि इसने उद्योग का स्वरूप धारण कर लिया है। परंपराओं के क्षरण पर चिंता जताते हुए ईसा के 400 वर्ष पूर्व का संदर्भ देते हुए उन्होंने परंपरा और आधुनिकता के मायने स्पष्ट किए।
कार्यक्रम के प्रारंभ में संगवारी पोस्ट के संयोजक गिरीश मिश्र ने इसकी जानकारी दी। संगवारी पोसेट अवार्ड के जूरी सदस्य गिरीश पंकज, रविद्र बाजपेयी, राहुल सिंह तथा पंकज झा को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में स्वामी सत्यरूपानंद, पं. भगवतीधर बाजपेयी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्य्करम का संचालन श्रीमती मधुरिमा दुबे ने किया। आयोजन में बबनप्रसाद मिश्र तथा उनकी अर्धागिनी मनोरमा मिश्र का सम्मान किया गया। मिश्रा परिवार के साथ अनेक साहित्यकार, पत्रकार तथा बड़ी संख्या में पं. बबनप्रसाद मिश्र के प्रशंसक मौजूद थे।

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