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Tuesday, August 13, 2013

देश के प्रतिष्ठित कवि एवं व्यंग्यकार पंo सुरेश नीरव की अध्यक्षता में एक 'काव्य संध्या'

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अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के तत्वावधान में दिनाँक 11अगस्त, 2013 (दिन रविवार) को सायं 6.00 बजे से उपायुक्त, वाणिज्य कर, नोएडा श्री अरुण सागर के शास्त्री नगर, गाज़ियाबाद स्थित निवास पर देश के प्रतिष्ठित कवि एवं व्यंग्यकार पंo सुरेश नीरव की अध्यक्षता में एक 'काव्य संध्या' का आयोजन हुआ, जिसका संचालन देश के प्रतिष्ठित गीतकार डॉo अशोक मधुप ने किया तथा 'प्रवासी संसार' त्रैमासिक पत्रिका के संपादक श्री राकेश पाण्डेय विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारम्भ गीतकार चंद्रभानु मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। कविवर मोहन द्विवेदी ने -'क्या करना सरकारी बातें, छोड़ो भ्रष्टाचारी बातें' व्यंग्य सुनाकर भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार किया। युवाकवि शिव कुमार बिलग्रामी ने अपनी ग़ज़ल - "मुराद नामुराद की जो पूरी हो तो किस तरह, ये वो मज़ार है जो ख़ुद फ़क़ीर ही को खा गयी" सुनाकर भाव-विभोर कर दिया। राहुल 'आर्यन' उपाध्याय की ग़ज़ल - "भले उम्रभर वो बुझी नहीं, वही तिश्नगी मेरा इश्क़ था, तेरा खेल था मेरी ज़िन्दगी, तेरी दिल्लगी मेरा इश्क़ था" खूब सराही गयी। कवयित्री पूनम माटिया का दोहा-"युग-युग से मैं कर रही, नित्य देह का दान, काश! कभी मन भाव को भी मिलती पहचान" खूब सराहा गया। कविवर रजनीकांत राजू की कविता-"सभी के अपने अपने ग़म, सभी को दर्द होता है, समझता है वही तो दर्द, जो हमदर्द होता है" की भी खूब प्रशंसा हुई। कविवर राजमणि ने - "बूढ़ी माँ को जब मिला, बच्चों से आदेश, अपना घर लंका लगा, घर वाले लंकेश" सुनाकर झकझोर दिया। हास्य-कवि बाबा कानपुरी ने-"नाच गाने शोर शब्दों की कहानी सब थे मौन, फिर भी घर भर में उदासी की व्यथा अच्छी लगी" ग़ज़ल सुनाकर सबको अचंभित कर दिया। शायर मृगेंद्र मक़बूल ने - "पाने के लिए आये न खोने को आये हैं, इस बज़्म में हम आपके होने को आये हैं," ग़ज़ल सुनाई। ओजस्वी कवि अरविन्द पथिक ने "अनुभूतियों के अक्ष पे होकर खड़े लिखता हूँ गीत, हाँ! समय के वक्ष पे होकर खड़े लिखता हूँ गीत" सुनाकर भाव विभोर कर दिया। युवा-शायर आदिल रशीद की ग़ज़ल - "कभी यक़ीन का मतलब नहीं बदलता है, तिलक या टोपी मज़हब नहीं बदलता है" ख़ूब सराही गयी। कार्यक्रम के संयोजक एवं साहित्य ऋचा के सम्पादक अरुण सागर ने अपनी ग़ज़ल - "तुमसे मिलने की तमन्ना में ख़ुमारी बढ़ गयी, तुम नहीं आये तो दिल की बेक़रारी बढ़ गयी" सुनाकर समां बाँध दिया। मशहूर शायर गोविन्द गुलशन की ग़ज़ल-"दिलों के दरमियाँ कोई तार टूटने लगा, बहुत बुरा हुआ कि ऐतबार टूटने लगा" सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया। संचालन कर रहे प्रतिष्ठित गीतकार डॉo अशोक मधुप के गीत - "बस्ती, नगर, गली, घर तेरे, हर बहार ने की अगुआई, लेकिन मेरे घर आँगन में, पतझड़ था, मधुमास नहीं था" सुनाकर वातावरण को श्रृंगारमय कर दिया। 'प्रवासी संसार' के संपादक राकेश पाण्डेय ने राष्ट्रीय चेतना की कविता - "गूंगों के कोलाहल से न हल निकलेगा, स्याह प्रभात से फिर कल निकलेगा, दुश्मन की संगीन गूँज रही सीमा पर, हम रहे मौन तो क्या प्रतिफल निकलेगा" से वातावरण में जोश भर दिया। अध्यक्षता कर रहे देश के प्रतिष्ठित व्यंग्यकार पंo सुरेश नीरव ने अपनी व्यंग्यपूर्ण ग़ज़ल - "कल तक थे नौकरी में जो लकड़ी की टाल के, कविता के आज बन रहे वो दादा फाल्के, मरने के बाद यार ने ऐसा किया सुलूक, जूते पहन के घूमता है वो मेरी खाल के" सुनाकर ख़ूब वाहवाही लूटी।
इस अवसर पर देश के प्रतिष्ठित गीतकार शिव बहादुर सिंह भदौरिया के आकस्मिक निधन पर एक शोक सभा आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गयी तथा सभी उपस्थित कवियों एवं श्रोताओं ने दो मिनट का मौन रख कर परमपिता परमात्मा से पुण्यात्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।

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