पेश है एक ग़ज़ल ..आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा..
ग़ज़ल-
आपके घर का जो औरों को पता देते हैं
कितने नादान हैं जो शोलों को हवा देते हैं
कितना नाज़ुक है तेरी यादों का हंसता ये वुजूद
बोझे सांसों के बदन जिसका झुका देते हैं
उनके दरवाजों पर होती नहीं आतिशबाजी
दिल जलाकर जो दिवाली का मज़ा देते हैं
कभी बिजली कभी बादल कभी तनहाई का डर
ऐसे मिलने के बहाने भी मज़ा देते हैं
उनके जीवन में कभी उठती नहीं हैं लहरें
अपनी धड़कन को जो पत्थर का बना देते हैं
ख़ुद को नज़रों से ज़माने की छिपाने को चलो
रेशमी जुल्फों का ये परदा गिरा देते हैं
मिल के इक साथ घरौंदे जो बनाए थे कभी
उनको हाथों से चलो आज मिटा देते हैं
जिक्र होता है हमारा यूं नए रिंदों में
जाम को छूकर वो मयखाना बना देते हैं।
-पंडित सुरेश नीरव
ग़ज़ल-
आपके घर का जो औरों को पता देते हैं
कितने नादान हैं जो शोलों को हवा देते हैं
कितना नाज़ुक है तेरी यादों का हंसता ये वुजूद
बोझे सांसों के बदन जिसका झुका देते हैं
उनके दरवाजों पर होती नहीं आतिशबाजी
दिल जलाकर जो दिवाली का मज़ा देते हैं
कभी बिजली कभी बादल कभी तनहाई का डर
ऐसे मिलने के बहाने भी मज़ा देते हैं
उनके जीवन में कभी उठती नहीं हैं लहरें
अपनी धड़कन को जो पत्थर का बना देते हैं
ख़ुद को नज़रों से ज़माने की छिपाने को चलो
रेशमी जुल्फों का ये परदा गिरा देते हैं
मिल के इक साथ घरौंदे जो बनाए थे कभी
उनको हाथों से चलो आज मिटा देते हैं
जिक्र होता है हमारा यूं नए रिंदों में
जाम को छूकर वो मयखाना बना देते हैं।
-पंडित सुरेश नीरव
2 comments:
कुछ लोग है जो ,बातों का बतंगड़ बना देते हैं।
ये बड़े नादाँ हैं जो , अपने इरादों को हवा देते हैं.
बात इतनी छोटी भी समझ नहीं आती इनको यारो
घर दूसरों का जलाने की कोशिश में घर खुद का जला लेते हैं
आदरणीय नीरव जी
आप मेरे कॉमेंट्स से नाखुश हैं दुःख हुआ। मेरा मकसद
किसी की भावनाओं को ठेस पहुचना नहीं किसी विशेष
पर कोइ कमेंट भी नहीं अपितु ऐसे लोगों की नासमझी
की तरफ इशारा था जो चाहे वो कोइ भी हो जो अपने स्वार्थ
के लिए ऐसे कम कर जाते हैं जिससे मानवता शर्मशार हो
जाती है इससे दूसरों के अलावा वे खुद भी प्रभावित होते हैं।
कमेंट का मकसद यही सन्देश देना था
भूल आखिर भूल है
चाहे हो वह छोटी
आपस मैं जो दूरियां बढाती
भूल आखिर भूल है
चाहे हो वह छोटी
घर समाज को जो बाटती
Post a Comment