यात्रा संस्मरण-
पूर्वांचल की एक यादगार काव्य यात्रा-
----------------------------------------
गाजियाबाद-ग़ाज़ियों की सरजमीं ग़ाजीपुर
में अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में
शरीक होने के लिए ग़ाजियों के नगर ग़ाज़ियाबाद से पंद्रह नवंबर को हम लोगों को
नईदिल्ली रेल्वे स्टेशन से शिवगंगा एक्स्प्रेस से रवाना होना था। ग़ज़ियाबाद से
मैं और मोहन द्विवेदी साथ-साथ चले और यथा समय नईदिल्ली स्टेशन पहुंच गए। काफी देर
बाद नोएडा से डॉक्टर अशोक मधुप भी हांफते-कांपते आ ही पहुंचे। ट्रेन चलने के पूरे
मूड में आ चुकी थी मग़र अरुण सागरजी अभी तक नहीं पहुंचे थे। उन्हें एअरपोर्ट से
सीधे आना था। उन्होंने जो अपनी लोकेशन बताई थी उसके मुताबिक उन्हें अब तक आ जाना
चाहिए था। मगर वे अबतक नहीं आए थे। और फोन भी नहीं उठा रहे थे। हम सभी लोग परेशान थे। अचानक इधर ट्रेन का रेंगना
और उधर अरुणजी का प्रकट होना एक चमत्कारी ढंग के साथ घटित हुआ। बदहवास,हांफते आखिर वो डब्बे में आ ही पहुंचे।
उनके न आने से हम लोगों की सांस फूल रही थी और दौड़कर आने से ख़ुद अरुणजी की।
बहरहाल उनके आने से उन्होंने और हम सभी ने राहत की पुर सुकून सांस ली। उन्होंने बताया कि वे ताजिये के जलूस में फंस गये थे।
ख़ैर.. तनाव की इस संक्षिप्त ऋतु के बाद एक सुखद यात्रा का शुभारंभ हुआ। टीवी पर आने से एक
नुकसान या फायदा यह है कि हमलोग हर जगह पहचान लिए जाते हैं। ट्रेन में भी हमें कुछ
छात्राओं द्वारा पहचान लिया गया। और अप्रत्याशित ढंग से एक चलती-फिरती कविगोष्ठी
ट्रेन में ही आयोजित हो गई। जो रात के ग्यारह बजे तक चली। प्रातःकाल सुबहे-बनारस का आनंद लिया गया और फिर यहां से काफिला कार द्वारा ग़ाज़ीपुर को रवाना हुआ। हमें रिसीव करने
गाजीपुर से संजय राय आए थे। वही इस कविसम्मेलन के संयोजक थे। उनकी सहृदयता ने हम सभी का मन
जीत लिया। वो दूसरे दिन तक हम सभी को बनारस ट्रेन में दिल्ली के लिए बैठाकर ही
विदा हुए। गाजीपुर के रास्ते
में हमें बताया गया कि ल़ॉर्ड कार्लवालिस
की गाजीपुर में ही मौत हुई थी और उनका यहां मकबरा है। हमलोगों ने उसे देखने की
इच्छा जताई। यह देखकर विस्मय हुआ कि अंग्रेजों के मकबरे आज भी कितने करीने से
संरक्षित हैं। लगता है कि भारतीय जनमानस में अंग्रेज अभी तक राज्य कर रहे हैं। जबकि अपने ही देश में ज्यादातर क्रांतिकारियों की समाधियों और
मूर्तियों की स्थिति बहुत ही कारुणिक और दयनीय है। ख़ैर प्रसिद्ध समाज सुधारक और किसान नेता स्वामी सहजानंद
सरस्वती की तपोभूमि में आकर मन एक अलौकिक ऊर्जा से भर गया। शाम को रामधारी शैक्षिक
संस्थान में कवि सम्मेलन हुआ। पूर्वांचल में कविता पाठ करने का एक अलग ही सुख होता
है क्योंकि यहां के सुननेवालों में कविता के
संस्कार आज भी जिंदा हैं और वे सिर्फ अच्छा कविताएं ही सुनते हैं। और खूब डूबकर सुनते
हैं। इस कविसम्मेलन में अरुण सागर की एक और गोपनीय प्रतिभा का पता लगा जो इस मंच
पर सार्वजनिक हुई। वह ये कि सागरजी जितने अच्छे कवि हैं उतने ही समर्थ मंच संचालक
भी हैं। उनके ऊर्जावान संचालन में मुझे अध्यक्षीय आसंदी पर बैठा दिया गया और फिर
शुरू हुआ कवि सम्मेलन। मिथलेश गहमरी ने अपनी ओजस्वी कविताओं से कविसम्मेलन की
शानदार शुरुआत की। और फिर भोजपुरी के लोकप्रिय कवि बहुरंगजी ने भोजपुरी गीतों से
एक अलग ही समां बांधा। इसके बाद कटनी से आए प्रकाश प्रलय ने अपने चुटीले व्यंग्य
सुनाकर श्रोताओं को गुदगुदाया जिसे और आगे बढ़ाया मोहन द्विवेदी ने अपनी व्यंग्यपरक
रचनाओं से। इसके बाद डॉक्टर अशोक मधुप के सरस गीतों में श्रोता बहुत देर तक डूबते
उताते रहे। कविसम्मेलन के संचालक अऱुण सागर ने फिर अपने मुक्तकों,दोहों,ग़ज़लों और
गीतों से कविसम्मेलन को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचा दिया। इसके बाद अध्यक्षीय
मुद्रा में अपनी ग़ज़लों और कविताओं के जरिए मैंने भी श्रोताओं से एक दिलचस्प
मानसिक रिश्तेदारी कायम की। कविसम्मेलन के मुख्य अतिथि आचार्य व्यास मुनि ने इस
मौके पर कहा कि बाजार के बढ़ते हुए प्रभाव के बावजूद आज के आयोजन को सुनकर मैं आश्वस्त
हुआ हूं कि अच्छी कविताएं आज भी लिखी जा रही हैं। अंत में आयोजन के संयोजक संजय
राय ने अतिथि कवियों का आभार व्यक्त करते हुए अगले वर्ष और अतिरिक्त भव्यता के साथ
कविसम्मेलन करने का संकल्प लिया जो इस आयोजन की सफलता का बखान खुद-ब-खुद करने के
लिए काफी है।
दूसरे दिन कार्तिक
पूर्णिमा के पावन अवसर पर गंगा किनारे स्थित लोकनिर्माण विभाग के गेस्टहाउस परिसर
में हमलोगों को गंगा की लहरों के कलकल नेपथ्य संगीत के बीच कविताएं पढ़ने का
सुअवसर मिला। यहां स्थित काल भैरव का आशीर्वाद पाकर कविताएं जो शुरू हुईं तो
श्रोता अपने आप जुटते चले गए। करीब दो घंटे प्रकृति की गोद और कविताओं के संसार
में रहकर हमलोग वापस बनारस की ओर चल पड़े और यहां से गरीब रथ पर आरूढ़ होकर दिल्ली
की ओर प्रस्थान कर गए। पूर्वांचल की इस काव्य यात्रा की जानदार और शानदार मधुर
स्मृतियों को मेरे ईमानदार प्रणाम।
प्रस्तुतिः पंडित सुरेश
नीरव
No comments:
Post a Comment