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Tuesday, November 12, 2013

हर इम्तिहाँ से यहाँ अपनी जिंदगी गुज़री



जो चाह के भी न रोशन हुए ज़माने में वही चिराग़ समझते हैं रौशनी क्या है
0000000000000 हवा सी , आग सी , पानी सी , धूप सी गुज़री
हर इम्तिहाँ से यहाँ अपनी जिंदगी गुज़री
-अतुल अजनबी

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