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Tuesday, February 2, 2010

मुझसे ही मेरे किरदार को अनजान कर गया ...

हुआ रुखसत तो मुझ पे वो एहसान कर गया
एक शख्स मेरी जिंदगी को वीरान कर गया

ये कौन आ गया मेरे ख्वाब-ओ -ख्याल में
जो मुझसे ही मेरे किरदार को अनजान कर गया

खौफ -ए- खुदा किया न कुछ ख्याल किया मेरा
जाते-जाते वो मेरी मौत आसान कर गया

तेज बारिश में उजड़े गरीबों के आशियाँ
अबके सावन पूरी बस्ती को सुनसान कर गया

मजबूर इस कफस में अरमान अब भी हैं जिन्दा
जीने का यह ज़ज्बा मुझे हैरान कर गया

आंसू पीते, सिसकते लब पूछते हैं दोस्त
वो है कौन मेहरबान जो तुझे बेजान कर गया ।

प्रस्तुति: अनिल (०२.०२.२०१० सायं ५.०० बजे )

3 comments:

mai... ratnakar said...

bahut khoob, chha gae

ratnakar tripathi

main...ratnakar

Udan Tashtari said...

वाह! बहुत खूब!

रंजना said...

Waah....Waah....Waah....

Bahut sundar gazal...sabhi sher umda...