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Saturday, October 9, 2010

कोई यू ही बेबफा नहीं होता


राजमणिजी हमारी कुछ मजबूरियां हैं
राजमणिजी आज ब्लाग पर आपकी प्रदर्शनी का समाचार पढ़ा। भगवानसिंह हंस ने उसकी रिपोर्ट भी पोस्ट की। हंसजी ने यह प्रशंसनीय कार्य किया है. मगर हम दिल्ली में नहीं रहते और आजकल कुछ व्यस्तताओंरमशरूफियतों के कारण आपकी प्रद्शनी देखने का सौभाग्य प्राप्र नहीं कर पायी मगर मेरी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं।

पंडित सुरेश नीरवजी

आपका व्यंग्य बहुत ही मार्मिक और धारदार है। उन्होंने हमारी हीन मानसिकता पर बहुत ही तेजाबी प्रहार किया है और लालफीताशाही को भी बेनकाब किया है।

श्री भगवानसिंह हंस जी

आपके भरत चरित का पूरा आनंद लिया जा रहा है।
यह एक अनूठा महाकाव्य है। भाषा की दृष्टि से भी और कथ्य की दृष्टि से भी।

सभी सदस्यों को नवरात्रे की शुभकामनाएं..

डाक्टर मधु चतुर्वेदी

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