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Friday, October 29, 2010

सोचकर ही हैरत होती है



मंजूऋषीजी आपका हार्दिक स्वागत...
पंडित सुरेश नीरवजी आपका व्यंग्य पढ़ा,पढ़कर मजा आ गया। डाबरमैन के जरिए आपने आलसी लोगों की अच्छी खबर ली है। आप इतना बढ़िया और इतना ज्यादा कैसे लिख लेते हैं,मुझे तो यह सोचकर ही हैरत होती है। ईश्वर आपको और प्रेरणा देता रहे। पंक्षीसाहब की देहरागिनी कविता बढ़िया है,उन्हें भी बधाई..
मुकेश परमार
संपादकःमानव जागृति

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