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Saturday, November 6, 2010

गूंगे का गुड़ है आस्था।

  आस्था के संदर्भ में माननीय विश्वमोहन तिवारी और आदरणीय प्रशांत योगीजी के विचार पढ़े। दर्शन की यह विशेषता है कि यहां तमाम शास्त्रार्थ के बाद भी निर्णय का कोई सिरा हाथ नहीं लगता है। विपरीत लगनेवाले  तथ्य भी उसी सत्य के सिक्के के पहलू होते हैं जो कि परम है। जो शून्य है। यहां निष्कर्ष शब्दों में आता ही नहीं है। वह तो मौन में उतरता है.। इसलिए शायद स्यातवाद का उदगम होता है। जहां हर बात होसकता है और नहीं भी हो सकता है कि मुद्रा में कही जाती है। शायद यह सत्य हो, शायद वह सत्य हो.।परहेप्स की भाषा ही दर्शन का स्वभाव है। निर्णय की बात पूछने पर तथागत मौन में उतर जाते हैं। यह मौन ही आस्था है। जिसे अनुभव किया जाता है। कहा नहीं जाता। यह भोग्य है। कथ्य नहीं है। अनुभूति है,आस्था। इसे महसूसा जाता है। गूंगे का गुड़ है शायद आस्था। मैं इस संदर्भ में कुछ बिंदु विनम्रता पूर्वक रख रहा हूं-
1.आस्था किसी व्यक्ति,व्यक्ति के कार्य या उसकी योग्यता के प्रति दर्शाया गया एक रचनात्मक भाव है।

2. आस्था किसी प्रमाण पर आधारित नहीं होती है। यह एक ऐसी परिकल्पना है जो परम सत्य के उद्यान में महकती है।
3.यह आस्था ही है जो एक तीर्थ यात्री को लंबी कष्टभरी यात्रा का आमंत्रण दोती है,  औरकिसी सिद्धांत,मूल्य और नियम के लिए बलिदान होने का साहस भी।
4. आस्था आचरणसंहिता की कूटभाषा है। योग्यता की कसौटी है और किसी से ईमानदारी से जुड़ने का मजबूत बंधन भी।
5. आस्था धार्मिक सिश्वास का विश्वकोष है। ईसाई और यहूदीधर्म की बुनियाद है-आस्था।

6. किसी के  प्रति कृतज्ञता का भाव, वफादारी का जज्बा, किसी के प्रति वचनबद्धता और संबंधों के निर्वाह का नाम है-आस्था। 
7. जब मैं मुसीबत में था तो मेरी सबसे ज्यादा मदद
उसने की। यह जो अहोभाव है,यही आस्था है।
8. ईस्वर के वचनों में आस्था जिसे है ईस्वर उसके प्रति हमेशा दयालु होता है। और उसकी रक्षा करता है।
समस्त आस्थाओं एवं विश्वास के साथ मेरे प्रणाम..
पंडित सुरेश नीरव
 

1 comment:

vishwa mohan tiwari said...

स्यातवाद तो आआस्था का विरोधी है, ईश्वर है भी और शायद नहीं भी, यह तो आस्था नहीं है, संशयवाद (स्कैप्टिसिज्म) के अधिक निकट है।
गूंगे का गुड़ अवश्य हो सकती‌है आस्था।
किसी व्यक्ति,व्यक्ति के कार्य या उसकी योग्यता के प्रति दर्शाया गया जो रचनात्मक भाव है उसे तो श्रद्धा या कृतज्ञता कह सक्ते हैं; आस्था तब होगी कि जब यह काहा जाए कि वह व्यक्ति भविष्य में सदा ही ऐसा ही व्यवहार करेगा।
"जब मैं मुसीबत में था तो मेरी सबसे ज्यादा मदद
उसने की। यह जो अहोभाव है,यही आस्था है।" यह कथन ईश्वर के सम्बन्ध मे सही है। उस व्यक्ति ने मदद की यह तो स्पष्ट है इसमें आस्था की आवश्यकता नहीं।