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Wednesday, December 1, 2010
जितने चर्च उतने फादर
गुरुदेव नीरवजी
आजकल आप खूब व्यंग्य लिख रहे हैं। और हर व्यंग्य नहले पर दहला। रिश्तेदारी की आपने अच्छी बखिया उधेड़ी है। भाई-भतीजावाद और आस्तीन के सांपों ने ही तो इस देश को तबाह किया है। और गधो को बाप बनाने की अवसरवादी तकनीक में तो हम भारतीयों को महारत हासिल है ही।आपकी इन पंक्तियों ने मुझे काफी झकझोरा है-
जो भी प्रार्थना-पूजा करता है,हम भारतीय तो तड़ से उसे बापू कह डालते हैं। हमारी इस उदार परंपरा के कारण ही आज कई महात्मा चैनलों पर भजन-प्रवचन करके बापू की केटेगिरी में आ गए हैं। इसलिए हम फिरंगियों के इस आरोप को सिरे से खारिज करते हैं कि हम सिर्फ गधों को ही बाप बनाते हैं। तमाम वेरायटी के बापू आज भी हमारी मार्केट में घूम रहे हैं। करे मल्टीनेशनल कंपनियां हमारा मुकाबला। मैं ये सोचकर हैरत में हूं कि इन फिरंगियों की सुई केवल पिताजी के रिकार्ड पर ही क्यों रुक गई। खुद इन फिरंगियों को अपने ऑरीजनल फादर का तो पता होता नहीं है गोया हर चर्च में इनका एक फादर जरूर होता है। जितने चर्च उतने फादर। यह हमारी बापू संस्कृति का ही प्रभाव है,जो इनके सर चढ़कर बोल रहा है।
मुकेश परमार
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