Search This Blog

Friday, January 7, 2011

चुप्पी,शब्द और प्रवचन


आज ब्लॉग की दुनिया में तमाम तरह के ब्लॉग मौजूद हैं मगर जितनी जीवंतता और सारगर्भित चर्चाएं जयलोक मंगल पर पढ़ने को मिलती हैं उसे पढ़कर मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि असली ज्ञानगंगा यहीं बह रही है। प्रशांत योगीजी अद्यात्म के व्यक्ति हैं उन्होंने ्पनी बात कही आदरमीय विश्वमोहन तिवारी ने शब्द के सही उपयोग का सवाल उटा कर साहित्यिक चेतना का पक्ष रखा मगर पंडित सुरेश नीरवजी ने यह कहकर कि हर शब्द जो हम प्रयोग में लाते हैं उनकी अपनी सीमाएं हैं और उनके अर्थ भिन्न-भिन्न भी हो जाते हैं इसलिए हमें शब्दों के बजाय चुप्पी को पकड़ना चाहिए यह एक अलग आयाम है सोच का। उन्होंने लाओत्से का उदाहरण भी दिया। सच मैं हम भाव को शब्दों के माध्यम से पकड़ने के आदी हो गए हैं। हमें मौन में उतरना होगा। यही भाव के साथ न्याय है। कुलमिलाकर जो बार योगीजी ने शुरू की उसे तिवारीजी ने आगे बढ़ाया और पंडितजी ने उसे पूर्णविराम दिया बड़ी खूबसूरती के साथ। सभी को सादर अभिवादन॥
अशोक मनोरम

No comments: