आदरणीय बी.एल.गौड़ साहब,
आपका गीत बहुत-सी संवेदनाओं को शब्दों में पिरोकर लाया है। जहां अतीत की छांव में बैठकर यादें विश्राम करती-सी लगती हैं। जिन मीठी यादों को आदमी जी चुका होता है क्या वह उसे दुबारा प्राप्त कर सकता है यह तलाश ही शायद किसी को गीत लिखने को विवश करती है। अच्छे गीत के लिए बधाई...ये पंक्तियां बहुत नाजुक-मुलायम हैं-
बीते दिन जब लौट के आयेंयादों की गठरी ले आयें
मार चौकड़ी आँगन बैठें
बीती बातों को दोहरायें
फिर कुछ रात पुरानी आयें
रंग बिरंगे सपने लायें
आयें फिर कुछ भोर सुहानी
संग में इन्द्रधनुष ले आयें
क्या कुछ ऐसा हो सकता है ?
पंडित सुरेश नीरव
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