मेरा तो कुछ नहीं गीत में
मेरा तो कुछ नहीं गीत में
जो भी है सभी तुम्हारा है
जैसी अनुभूति हुई वैसी
मन कागज़ उसे उतारा है
लिखता कौन लिखाता को है
कलम नहीं जब लिख पाती है
नाद विचरता नाभि सिंधु
जब शब्द शक्ति यह लिखवाती है
जन्मा नहीं अजन्मा लेकिन
भीतर-भीतर उजियारा है
मेरा तो कुछ नहीं गीत में
जो भी है सभी तुम्हारा है।
डॉक्टर जगदीश परमार
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