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Sunday, March 6, 2011

बहुत अलग अंदाज़ में आपने शेर कहे हैं


आदरणीय नीरवजी..
आपकी आज की ग़ज़ल पढ़ी। बहुत अलग अंदाज़ में आपने शेर कहे हैं। और हर शेर ही ग़ज़ल का हासिले मुकाम शेर है। बहुत उम्दा थी आपकी ग़ज़ल और इन शेरों का तो कहना ही क्या है-
मैं खो गया था अंधेरों में बुझ-बुझा के कहीं
चराग उसने बनाया है फिर जला के मुझे
oo
छिपे हैं जलते हुए लम्हों के दिए मुझमें
उजाला घर में कर इकबार तू बुला के मुझे

oo
टहलने निकला है वो आज आसमानों में
सुलगती छांव में बेआसरा सुला के मुझे।

oo
डॉक्टर प्रेमलता नीलम

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