आदरणीय नीरवजी..
आपकी आज की ग़ज़ल पढ़ी। बहुत अलग अंदाज़ में आपने शेर कहे हैं। और हर शेर ही ग़ज़ल का हासिले मुकाम शेर है। बहुत उम्दा थी आपकी ग़ज़ल और इन शेरों का तो कहना ही क्या है-
मैं खो गया था अंधेरों में बुझ-बुझा के कहीं
चराग उसने बनाया है फिर जला के मुझे
ooचराग उसने बनाया है फिर जला के मुझे
छिपे हैं जलते हुए लम्हों के दिए मुझमें
उजाला घर में कर इकबार तू बुला के मुझे
oo
टहलने निकला है वो आज आसमानों में
सुलगती छांव में बेआसरा सुला के मुझे।
oo
डॉक्टर प्रेमलता नीलम
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