सुनामी को समर्पित
ग़ज़ल
परछाइयां बढ़ने लगी रात होने को है.
अहिस्ता -अहिस्ता खत्म हयात (जीवन) होने को है..
अपने राज़ दिलों में रखना जहाँ वालों .
यहाँ हर क़दम पे प्रतिघात होने को है ..
खड़ी है कठघरे में मानवता आज .
और कितने ही सवालात होने को है..
होगा "अकेला" कहर और तबाही का मंज़र.
रुकेगी नहीं जो बरसात होने को है..
रणजीत गोहे "अकेला"
क्या है ज़िंदगी से कीमती बताना चाहिए ..
ग़र "अकेला" एक झूठ से बचती है किसी की जां.
रख गीता पर हाथ सच से मुकर जाना चाहिए ..
रणजीत गोहे "अकेला"
ग़ज़ल
परछाइयां बढ़ने लगी रात होने को है.
अहिस्ता -अहिस्ता खत्म हयात (जीवन) होने को है..
अपने राज़ दिलों में रखना जहाँ वालों .
यहाँ हर क़दम पे प्रतिघात होने को है ..
खड़ी है कठघरे में मानवता आज .
और कितने ही सवालात होने को है..
होगा "अकेला" कहर और तबाही का मंज़र.
रुकेगी नहीं जो बरसात होने को है..
रणजीत गोहे "अकेला"
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हक़ीक़त से हमें रु-बरु होना चाहिए .क्या है ज़िंदगी से कीमती बताना चाहिए ..
ग़र "अकेला" एक झूठ से बचती है किसी की जां.
रख गीता पर हाथ सच से मुकर जाना चाहिए ..
रणजीत गोहे "अकेला"
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