बी.एल. गौड़ को साहित्यश्री सम्मान मिलने पर शीला डोगरे ने भेजी कविता
एक साये की खोज तो है मुझको भी,
शायद मिलजयें वह यही कही ...,
एक साया है ठहरा-ठहरा ,
धुप मे जल हो गया है गहरा.
साया मुझमे ,मै साये मे ...
हम दोनों एक-दूजे के साथी.
साथ हमारा भरी दोपहरी ,
छाव की तो वह लांघे ना देहरी
. मगरूर बन अकड़ता जाये,
ढलती शाम सा बढ़ता जाये.
वह बस मुझसे ही बतियाये ,
फिर भी लगता है पराया ,
हर बार उसको न्य ही पाया .....|||||||
२० मई २०११ ९:४४ अपराह्न को, Praveen Arya <
एक साये की खोज तो है मुझको भी,
शायद मिलजयें वह यही कही ...,
एक साया है ठहरा-ठहरा ,
धुप मे जल हो गया है गहरा.
साया मुझमे ,मै साये मे ...
हम दोनों एक-दूजे के साथी.
साथ हमारा भरी दोपहरी ,
छाव की तो वह लांघे ना देहरी
. मगरूर बन अकड़ता जाये,
ढलती शाम सा बढ़ता जाये.
वह बस मुझसे ही बतियाये ,
फिर भी लगता है पराया ,
हर बार उसको न्य ही पाया .....|||||||
२० मई २०११ ९:४४ अपराह्न को, Praveen Arya <
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